Sunday, September 14, 2025

नए अध्ययन में पीठ दर्द और माइग्रेन के पुराने दर्द को लेकर अहम खुलासा

शोधकर्ताओं के द्वारा 18 -65 वर्ष की आयु के 1,000 से अधिक प्रतिभागियों  जिनमें से 531 को तीन महीने से अधिक समय से पीठ दर्द, माइग्रेन या गठिया था और 515 को कोई दर्द की समस्या नहीं थी। पर किये गये अध्ययन से शोधकर्ताओं ने पता लगया की पुराने दर्द से पीड़ित व्यक्तियों में परफेक्शन का स्तर काफी ज्यादा और दर्द-मुक्त व्यक्तियों की तुलना में आत्म-करूणा और खुद से प्रभावित होने का स्तर कम पाया गया। इससे पता चलता है कि पीठ दर्द और माइग्रेन जैसी पुराने क्रोनिक दर्द से जूझने वाले ज्यादातर लोग परफेक्शन के उच्च स्तर और आत्म-करूणा में कमी से घिरे होते हैं। यह इस बात को साबित करता है कि स्वास्थ्य स्थितियों के प्रबंधन में मनोवैज्ञानिक कारक कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि परफेक्शनिस्ट बनने की प्रवृत्तियों पर काबू पाने और आत्म-करूणा को बढ़ावा देने से पुराने दर्द से पीड़ित लोगों में तनाव प्रबंधन और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।

आमतौर पर अपेक्षित उपचार अवधि से अधिक या तीन महीने से ज्यादा समय तक बने रहने वाले दर्द को क्रोनिक दर्द माना जाता है। मनोविज्ञान और स्वास्थ्य पत्रिका में प्रकाशित इस स्टडी के मुताबिक अत्यधिक ऊंचे व्यक्तिगत मानकों के लिए प्रयास करने से पारस्परिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिससे नकारात्मक परिणामों का जोखिम बढ़ सकता है। जाहिर है कि खुद को परफेक्शनिस्ट साबित करने के निरंतर प्रयासों में घिरे रहने से माइग्रेन जैसे क्रॉनिक दर्द पैदा हो सकते हैं। 

ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक के अनुसार, क्रोनिक दर्द से पीड़ित लोग रोजमर्रा की गतिविधियों को करने में कठिनाई के कारण निराशा का अनुभव कर सकते हैं और खुद के लिए ऐसे लक्ष्य तय कर लेते हैं, जो उनके लिए करना बेहद मुश्किल भी हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि परफेक्शन या पूर्णतावाद से ग्रस्त लोग अक्सर खुद की अत्याधिक आलोचना भी करते हैं, जो उन्हें लक्ष्यों को प्राप्त करने से और दूर कर सकता है, जिससे वे मानसिक अस्वस्थ्यता के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। 

मनोवैज्ञानिक ने कहा, इसके अलावा, उन्हें यह भी लग सकता है कि दूसरों की अपेक्षाएं पूरी करना मुश्किल है। क्रोनिक दर्द की स्थिति और इस स्थिति के कारण मन पर होने वाले बोझ को अपनी गलती मानते हुए आत्म-आलोचना का डर प्रदर्शित होता है। इनका अपनी क्षमता पर आत्मविश्वास की धारणा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, इनका तनाव से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से संबंध है, जिसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। 

शोधकर्ताओं ने कहा कि ये निष्कर्ष यह समझने में मदद कर सकते हैं कि परफेक्शन और आत्म-करूणा और आत्मविश्वास के सुरक्षात्मक प्रभाव पुराने दर्द की स्थितियों के प्रबंधन में कैसे मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिक ने सुझाव दिया कि आत्म-करूणा बढ़ाने और खुद को परफेक्शनिस्ट साबित करने वाली प्रवृत्तियों को दूर करने के उद्देश्य से किए गए हस्तक्षेप, दीर्घकालिक दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए लाभदायक हो सकते हैं। 

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